Rakhi mishra

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इंस्टालमेंट (प्रेरक लघुकथाएं)

"अरे बाई! जरा दरद सहन कर। क्यों चिल्लाती है? देर है अभी।" गीताबाई ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ फेरा।


इस अस्पताल में ही उनका जीवन गया था। जाने कितनी ही जच्चाओं को¸ उनके हाथ में गुड्‌डे गुड़िया थमा खुशी - खुशी घर भेज चुकी थी।


डॉ वैद्य की भरोसेमंद दाई थी वे। हड़बड़ी या जल्दबाजी में उन्होने कभी कोई निर्णय नहीं लिया। रात - रात भर ही क्यों न जागना पड़ा हो¸ उनका दबाव हमेशा ही सामान्य प्रसूति की ओर ही रहा करता था। । बहुत ज्यादा खतरा होने या देर हो जाने पर ही वे किसी गर्भवती की प्रसूति ऑपरेशन से करवाती।


इन दिनों उनकी बहू भी अस्पताल में आने लगी है जो कि स्वयं भी स्त्री रोग विशेषज्ञा है। उसके आने के कारण डॉ वैद्य ने अस्पताल आना काफी कम कर दिया है। बहू ने आते ही सारे अस्पताल का कायकल्प करवाया। खुद के केबिन में ए सी¸ नये इक्यूपमेंट्‌स¸ यंत्र¸ आधुनिक साजो सामान आदी सब कुछ "हॉस्पिटल इंप्रूवमेंट लोन" की राशि के अंतर्गत लिया था।


हालाँकि डॉ वैद्य इसके पक्ष में नहीं थी। क्योंकि इस खर्चे के चलते उन्हें अपनी फीस बढ़ानी पड़ी थी जिसके कारण उनकी बरसों पुरानी मरीज आजकल अपनी बहू बेटियों को उनके पास लाते हुए कतराने लगी थी। एक दो बार उन्होने अप्रत्यक्ष रूप से यह बात बहू से कही भी थी । लेकिन बहू ने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया था कि उसके पास कमाई के दूसरे तरीके भी है। पूरा जीवन स्त्री राग विशेषज्ञा के रूप में बिता चुकी डॉ वैद्य असमंजस में जरूर पड़ी थी लेकिन उन्होने बहू से कुछ कहा नहीं। आखिर आगे ये सब कुछ उसे ही तो सम्हालना था।


उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कुछ महीनों के बाद ही उनकी बरसों पुरानी गीताबाई¸ बिना किसी स्पष्ट कारण के तड़क फड़क नौकरी छोड़ गई।


तबियत थोड़ी गिरी हुई सी रहने लगी थी उनकी। बावजूद इसके वे उस दिन अस्पताल गई। वे पहुँची ही थी कि उनसे क्षण भर पूर्व अभिजात्य वर्ग का एक परिवार अत्याधुनिक गाड़ी से उतरा। एक बाईस तेईस साल की गर्भवती युवती¸ उसके पति¸ सास¸ ससुर आदी। अनुभवी डॉ वैद्य उस युवती को देखते ही जान गई कि इसे हफ्ते पन्द्रह दिन तक कुछ नहीं होने का¸ हल्के दर्द उठ रहे होंगे बस।


लेकिन वे हतप्रभ रह गई ये देखकर कि उनकी बहू ने उसे अपने केबिन में बमुश्किल पाँच मिनट जाँचा परखा और इमरजेन्सी केस घोषित कर ड़ाला! सारा परिवार सकते में। एक सदस्य मोबाईल से जाने किस किस को फोन करने लगा। दूसरा अस्पताल के काऊण्टर पर नोटों की गड्डियाँ रखने लगा और देखते ही देखते उस सामान्य सी दिखाई देती लड़की की ऑपरेशन द्‌वारा प्रसूति करवा दी गई।


डॉक्टर वैद्य बहू के ए सी केबिन में पहुँची तब वह सब से बेखबर¸ किसी से फोन पर बतिया रही थी।


"अरे अब कोई सहन करने की तकलीफ से बचना चाहे तो इमरजेंसी डिक्लियर करनी ही पड़ती है। एनी वे! इस बार का लोन इन्टॉलमेंट तो पूरा पक गया। तू सुना!"


डॉक्टर वैद्य को काटो तो खून नहीं। ये था उनकी विश्वस्त गीताबाई का नौकरी छोड़ने का कारण और काबिल बहू का पैसा कमाने का नया तरीका...

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